दूर से आये थे साक़ी सुन के मयख़ाने को हम
बस तरसते ही चले अफ़सोस ! पैमाने को हम
मय भी है,मीना भी है,साग़र भी है साक़ी नहीं
दिल में आता है लगा दें आग मयख़ाने को हम
हम को फंसना था क़फ़स में,क्या गिला सय्याद का
बस तरसते ही रहे हैं आब और दाने को हम
बाग़ में लगता नहीं,सहरा से घबड़ाता है दिल
अब कहाँ ले जा के बैठे ऐसे दीवाने को हम
क्या हुई तक़सीर हम से , तू बता दे ऐ 'नज़ीर'
ताकि शादी मर्ग समझें ऐसे मर जाने को हम
साक़ी-मदिरा पिलाने वाला । मयख़ाने-मदिरालय । पैमाना- मदिरा पात्र । मय- मदिरा। मीना- सुराही ।साग़र- प्याला । क़फ़स- पिंजड़ा,कारागार। सय्याद- शिकारी ।आब और दाना- जल एवं अन्न ।सहरा- मरूस्थल ।तक़सीर-भूल ।शादी- हर्ष,प्रसन्नता ।मर्ग- मृत्यु ।
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